Tulsidas Ka Janm Kab Hua Tha (तुलसीदास का जन्म कब हुआ था)

Tulsidas Ka Janm Kab Hua Tha – नमस्कार दोस्तों आपका हमारे एक और नए पोस्ट पर स्वागत है जहा आज इस पोस्ट के माध्यम से “तुलसीदास का जन्म कब हुआ था” के बारे में बताने जा रहे है जहा यदि आप भी तुलसीदास जी के बारे में और अधिक जानना चाहते है तब आप एक दम सही पोस्ट पर आये है जहा पर आज आपको तुलसीदास जी के बारे में सभी तरह की जानकारी देने जा रहे है।

वैसे यदि हम भारत में देखे तो एक से बढ़कर एक रचनाकार हुए उन्ही में से एक थे तुलसीदास जी जिन्होंने अपने जीवन कल को ईश्वर की भक्ति में लगा दिया और इसी के साथ साथ उन्होंने कई कृतियों की रचना भी की जिनमे से उनकी सुप्रसिद्ध रचना रामायण है जो की आज के समय में काफी लोगो के द्वारा पढ़ी जाती है और समय समय पर इनके द्वारा लिखी रामायण का पाठ किया जाता है। इनके द्वारा लिखित रामायण को रामचरितमानस कहा जाता है जो की अपने आप में एक गौरव ग्रन्थ है।

Tulsidas Ka Janm Kab Hua Tha (तुलसीदास का जन्म कब हुआ था)

Tulsidas Ka Janm Kab Hua Tha

तुलसीदास जी का जन्म 15 Aug 1532 को हुआ था और इनका पूरा नाम गोस्वामी तुसलीदास था इनका जन्म स्थल राजापुर था और इनका निधन अस्सी घाट वाराणसी में 31 July 1623 को हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी दुबे था और इनके एक पुत्र भी थे जिनका नाम तारक था।

तुलसी दास का जन्म कब और कहा हुआ था?

तुलसीदास का जन्म 15 Aug 1532 को राजापुर में हुआ था

तुलसीदास की कुल कितनी रचना है?

गीतावली (1571), कृष्ण-गीतावली (1571), रामचरितमानस (1574), पार्वती-मंगल (1582), विनय-पत्रिका (1582), जानकी-मंगल (1582), रामललानहछू (1582), दोहावली (1583),वैराग्यसंदीपनी (1612), रामाज्ञाप्रश्न (1612), सतसई, बरवै रामायण (1612), कवितावली (1612),हनुमान बाहुक

और अन्य रचनाये

  • रामचरितमानस
  • रामललानहछू
  • वैराग्य-संदीपनी
  • बरवै रामायण
  • पार्वती-मंगल
  • जानकी-मंगल
  • रामाज्ञाप्रश्न
  • दोहावली
  • कवितावली
  • गीतावली
  • श्रीकृष्ण-गीतावली
  • विनय-पत्रिका
  • सतसई
  • छंदावली रामायण
  • कुंडलिया रामायण
  • राम शलाका
  • संकट मोचन
  • करखा रामायण
  • रोला रामायण
  • झूलना
  • छप्पय रामायण
  • कवित्त रामायण
  • कलिधर्माधर्म निरूपण
  • हनुमान चालीसा

तुलसी जी के माता पिता का क्या नाम था?

तुलसीदास जी के पिता जी का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी दुबे था

गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती कब है?

तुलसीदास जयंती 04 अगस्त को मनाई जाती है

तुलसी की मृत्यु कब हुई?

तुलसीदास जी की मृत्यु 31 July 1623 को हुई थी

भगवान श्री राम जी से भेंट

कुछ काल राजापुर रहने के बाद वे पुन: काशी चले गये और वहाँ की जनता को राम-कथा सुनाने लगे। कथा के दौरान उन्हें एक दिन मनुष्य के वेष में एक प्रेत मिला, जिसने उन्हें हनुमान ‌जी का पता बतलाया। हनुमान ‌जी से मिलकर तुलसीदास ने उनसे श्रीरघुनाथजी का दर्शन कराने की प्रार्थना की। हनुमान्‌जी ने कहा- “तुम्हें चित्रकूट में रघुनाथजी दर्शन होंगें।” इस पर तुलसीदास जी चित्रकूट की ओर चल पड़े।

चित्रकूट पहुँच कर उन्होंने रामघाट पर अपना आसन जमाया। एक दिन वे प्रदक्षिणा करने निकले ही थे कि यकायक मार्ग में उन्हें श्रीराम के दर्शन हुए। उन्होंने देखा कि दो बड़े ही सुन्दर राजकुमार घोड़ों पर सवार होकर धनुष-बाण लिये जा रहे हैं। तुलसीदास उन्हें देखकर आकर्षित तो हुए, परन्तु उन्हें पहचान न सके। तभी पीछे से हनुमान जी ने आकर जब उन्हें सारा भेद बताया तो वे पश्चाताप करने लगे। इस पर हनुमान जी ने उन्हें सात्वना दी और कहा प्रातःकाल फिर दर्शन होंगे।

संवत्‌ 1607 की मौनी अमावस्या को बुधवार के दिन उनके सामने भगवान श्रीराम भगवान श्री राम जी पुनः प्रकट हुए। उन्होंने बालक रूप में आकर तुलसीदास से कहा-“बाबा! हमें चन्दन चाहिये क्या आप हमें चन्दन दे सकते हैं?” हनुमान ‌जी ने सोचा, कहीं वे इस बार भी धोखा न खा जायें, इसलिये उन्होंने तोते का रूप धारण करके यह दोहा कहा:

चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर। तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥

तुलसीदास भगवान श्री राम जी की उस अद्भुत छवि को निहार कर अपने शरीर की सुध-बुध ही भूल गये। अन्ततोगत्वा भगवान ने स्वयं अपने हाथ से चन्दन लेकर अपने तथा तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और अन्तर्ध्यान हो गये।

सफलता के बारे में तुलसीदास गोस्वामी के ये 5 दोहे

1- तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक। साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक।
तुलसीदास जी कहते हैं कि किसी भी विपदा से यह 7 गुण आपको बचाएंगे- 1:विद्या 2: विनय, 3:विवेक, 4:साहस, 5:आपके भले कर्म, 6: सत्यनिष्ठा और 7:भगवान के प्रति आपका विश्वास।

2-सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु। बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।
बहादुर व्यक्ति अपनी वीरता युद्ध के मैदान में शत्रु के सामने युद्ध लड़कर दिखाते हैं और कायर व्यक्ति लड़कर नहीं बल्कि अपनी बातों से ही वीरता दिखाते
हैं।

3-आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह। तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।
जिस समूह में शिरकत होने से वहां के लोग आपसे खुश नहीं होते और वहां लोगों की नजरों में आपके लिए प्रेम या स्नेह नहीं है, तो ऐसे स्थान या समूह
में हमें कभी शिरकत नहीं करना चाहिए, भले ही वहां स्वर्ण बरस रहा हो।

4- तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर। बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।
तुलसीदास जी कहते हैं कि मधुर वाणी सभी ओर सुख का वातावरण पैदा करती हैं। यह हर किसी को अपनी और सम्मोहित करने का यही एक कारगर मंत्र है इसलिए हमें कटु वाणी त्याग कर मधुरता से बातचीत करना चाहिए।

5- तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए। अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए।
तुलसीदास कहते हैं, भगवान पर भरोसा करें और किसी भी भय के बिना शांति से सोइए। कुछ भी अनावश्यक नहीं होगा, और अगर कुछ अनिष्ट घटना ही
है तो वो घटकर ही रहेगी इसलिए बेकार की चिंता और उलझन को छोड़कर मस्त रहना चाहिए।

अंतिम शब्द

आज इस पोस्ट के माध्यम से आपको हमने Tulsidas Ka Janm Kab Hua Tha के बारे में जानकारी दी है जहा मुझे उम्मीद है आपको मेरे द्वारा दी गई जानकारी काफी पसंद आयी होगी इसी के साथ यदि इस पोस्ट में आपको किसी भी जानकारी से सम्बंधित त्रुटि लगती है तब आप हमें नीचे कमेंट बॉक्स के माध्यम से कमेंट कर के बता सकते हैं हम उसमे सुधर करने की कोशिस करेंगे।

इसी के साथ यदि आपको यह पोस्ट अच्छा लगा तब आप सोशल मीडिया के माध्यम से इस पोस्ट को अपने परिचित व्यक्तियों के साथ साझा कर सकते है और इस पोस्ट से सम्बंधित या फिर तुलसीदास जी से सम्बंधित किसी भी तरह का कोई सवाल है या फिर सुझाव है तब आप हमें कमेंट कर के बता सकते है हम जल्दी आपके कमेंट पब्लिश करेंगे।